'टाइम' खराब नहीं, सच की तरह कड़वा है बस!

इसलिए आज से अथश्री सीन कथा... देखा हुआ, भोगा हुआ, अपने पर और औरों पर गुजरते हुए महसूस किया हुआ. सब लिखेगा अपना विनोद. वो जो मेरे अंदर पुकार की तरह भरा है. उसे मौन से जगाते हुए. जैसे वो टीवी पर रचा करता था "क्या सीन है!" अपने दौर की विडंबनाओं पर उंगली रखते हुए, कभी हंसी-ठिठोली तो कभी चुटकी लेने के अंदाज में गुदगुदाता हुआ. वो जाने कैसे मौन हो गया था- पिछले एक दशक के दंश में... वो कहते हैं न जब दर्द हद से गुजर जाए, तो दवा बन जााता है. 2020 कुछ ऐसा ही बन गया अपने 12 महीनों में. शुरु हुआ नागरिकता कानून, फिर दंगा फसाद, फिर सरकार की खरीद फरोख्त के बीच पांव फैलाते कोरोना के साथ और अब खत्म हो रहा है किसानों के आंदोलन की आंच के साथ. इसीलिए महामारी के इस साल को 'टाइम' ने क्रॉस कर दिया. 75 साल में सबसे बुरा साल! पहली बार 1945 में, जब दूसरे विश्व युद्ध में सबसे ज्यादा बर्बादी हुई, #हिटलर मरा, जापान पर दो दो परमाणु बम गिरे। तब से #टाइम हर बुरे साल को दिसंबर के अंक में रेड क्रॉस से रेखांकित करता रहा है। ये पांचवी बार है, जब #कोरोना ने 2 और 0 के मैजिकल इयर को महामारी का साल बना दिया। आखिरी बार रेड क्रॉस 2011 में #ओसामा के खात्मे के बाद बना था। सच में ऐसा साल कैलेंडर में खटकता तो है बहुत सी बातें और भी खटक रही हैं. तो चलिए आपके साथ उन्हें चिन्हिंत इंगित करने का एक मंच फिर से जिंदा करते हैं. कुछ कहते हैं, कुछ सुनते हैं. जानते हैं- इस अदा से गम की गांठ नहीं बनती. संवाद होता है, तो समाधान का रास्ता खुलता है. इसी उम्मीद में....विनोद!

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