भला कोई देता है जूते से श्रद्धांजलि!


जी नहीं, जूते से श्रद्धांजलि कोई नहीं देता, जो देता है वो दिल से देता है. ये हम सब जानते हैं, इसीलिए मेरा 9 साल का बच्चा भी समझता है, श्रद्धांजलि दिल से दो, तो कोई मैटर नहीं करता, पांव में जूता है या पांव गंदे हैं।

वाकया टीवी पर हो रहा था. मुंबई हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि सभा में कुछ लोग जूता पहनकर दिख गए. भाई लोगों ने काट दिया गोला, लगा दिया ऐरो. हेडर दे दिया- ये कैसी श्रद्धांजलि। बेटा बोला- पापा, ये किस बात पर सर्किल लगा है, ये ऐरो क्या दिखा रहा है।

मैं कहने वाला था- बेटा, श्रेष्ठ सफाई पसंद लोगों को ये अच्छा नहीं लगता, कि कोई जूता पहन कर हाथ जोड़े चकाचक सफेद श्रद्धांजलि सभा में कोई काले कलूटे जूते पहनकर आए. इससे डिजाइन में फर्क पड़ता है. इससे पहले वो बोल पड़ा-

अच्छा, जूता पहनकर आए हैं इसलिए. लेकिन हम तो अपने स्कूल के प्रेयर में जूता पहनकर ही प्रार्थना करते हैं. इनमें क्या गलत है. और पूजा पर आप भी तो हमें कभी कभार गंदे पांव भी बिठा लेते हो, कई बार छोटू को तो आप जूता पहने ही गोद में बिठा लेते हो. 'माताजी'(मां सरस्वती) तो बुरा नहीं मानती

मैं तो भैया निरुत्तर था. मैंने कहा- बेटा कोई बात नहीं, तुम इस बहस में पड़ ही क्यों रहे हो, नहीं अच्छा लग रहा तो- CHANGE THE CHANNEL!

THATS IT

टिप्पणियाँ

कडुवासच ने कहा…
... vaah vaah ... kyaa baat hai !!!
lokesh singh ने कहा…
बहुत प्यारा ब्यंग ,चुभती हुयी बात बहुत प्यारे ढंग से बयां कर दिया अपने

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