मोहब्बत का मीट- दो पीस
मीट और मोहब्बत का...ये वेजिटेरियन लोगों को अजीब सा जुमला लगेगा, लेकिन गजब का ये मोहब्बत का नॉनवेज एहसास। मीट की दुकान में तो कई बार गया हूं, लेकिन इस बार कसाई का जुमला जेहन में बैठ गया.
देखने में कितना हिंसक दृश्य होता है मीट शॉप का। हर तरफ मांस ही मांस, हर तरफ लटकती मुर्गों और बकरों की छिली हुई देह, चाकू, दाब और कसाई का हाथ सबकुछ खून और मांस के छीटों से सना हुआ...लेकिन कसाई की भंगिमा ऐसी कि दुनिया के बड़े से दार्शनिक को भी चकित कर दे।
कसाई का चेहरा कतई साथ नहीं देता इस दृश्य का। बिलकुल भावशून्य-सपाट चेहरा, पूरी पर्सनालिटी में जिंदगी और मौत का जरा सा भी अंतर्विरोध नही दिखता. सख्ती से सिले हुए होठ- ठीए पर कसाई के हर प्रहार में गजब का आत्मविश्वास दिखता है- ठीए पर ठक... ठक॥ ठक... इतनी सधी हुई कि इसकी बुलंदी में गुम हो जाती है सबकी आवाज. खुद कसाई भी इस आवाज में इस कदर गुम होता है कि वो बस तोल कर फेंके गए मीट को निवालों में बांटता चला जाता है, इतना सिद्धहस्त कि टुकड़े करने के लिए प्रहार अलग और गंदगी निकालने के लिए प्रहार अलग...
मीट की दुकान में अजीब सी शांति होती है- मछली की दुकान से अलग। ग्राहक चुप, कैश काउंटर पर मैनेजर चुप, फ्रीजर से ठंडा मीट निकाल कर ठीए पर रखने वाला स्पॉटब्वाय चुप- कसाई के दर्शन में सब गुम होते हैं- सामने हाथ बांधे खड़े हुए, मांस को टुकड़ों में कटते देखते हुए, अपनी बारी का इंतजार करते हुए। बेहद संयमित और एक तरह से हतप्रभ. मीट की दुकान में इतनी तहजीब!
'हां जी सर, आपका कितना...'
'2 किलो मटन भैया...
''2 किलो? घर में मेहमान आ रहे हैं क्या सरजी, आप तो...
'हां हां, भैया, जरा ढंग का मीट देना...
''ये लो जी...कट...कट...कट...कट...कट...'
मिनट भर में 2 किलो मीट कट कर तैयार...एक बराबर साफ-सुंदर टुकड़े। तराजू पर फेंका- वजन ठीक
दो किलो। वाह क्या एक्यूरेसी है...!
पैक करते हुए कसाई ने थैले में दो पीस मीट अलग से डाल दिए, मैने पूछा ये कैसा मीट डाल दिया भैया....
'सर जी, ये दो पीस मीट मोहब्बत के हैं- खाईए और खुश रहिए...'
देखने में कितना हिंसक दृश्य होता है मीट शॉप का। हर तरफ मांस ही मांस, हर तरफ लटकती मुर्गों और बकरों की छिली हुई देह, चाकू, दाब और कसाई का हाथ सबकुछ खून और मांस के छीटों से सना हुआ...लेकिन कसाई की भंगिमा ऐसी कि दुनिया के बड़े से दार्शनिक को भी चकित कर दे।
कसाई का चेहरा कतई साथ नहीं देता इस दृश्य का। बिलकुल भावशून्य-सपाट चेहरा, पूरी पर्सनालिटी में जिंदगी और मौत का जरा सा भी अंतर्विरोध नही दिखता. सख्ती से सिले हुए होठ- ठीए पर कसाई के हर प्रहार में गजब का आत्मविश्वास दिखता है- ठीए पर ठक... ठक॥ ठक... इतनी सधी हुई कि इसकी बुलंदी में गुम हो जाती है सबकी आवाज. खुद कसाई भी इस आवाज में इस कदर गुम होता है कि वो बस तोल कर फेंके गए मीट को निवालों में बांटता चला जाता है, इतना सिद्धहस्त कि टुकड़े करने के लिए प्रहार अलग और गंदगी निकालने के लिए प्रहार अलग...
मीट की दुकान में अजीब सी शांति होती है- मछली की दुकान से अलग। ग्राहक चुप, कैश काउंटर पर मैनेजर चुप, फ्रीजर से ठंडा मीट निकाल कर ठीए पर रखने वाला स्पॉटब्वाय चुप- कसाई के दर्शन में सब गुम होते हैं- सामने हाथ बांधे खड़े हुए, मांस को टुकड़ों में कटते देखते हुए, अपनी बारी का इंतजार करते हुए। बेहद संयमित और एक तरह से हतप्रभ. मीट की दुकान में इतनी तहजीब!
'हां जी सर, आपका कितना...'
'2 किलो मटन भैया...
''2 किलो? घर में मेहमान आ रहे हैं क्या सरजी, आप तो...
'हां हां, भैया, जरा ढंग का मीट देना...
''ये लो जी...कट...कट...कट...कट...कट...'
मिनट भर में 2 किलो मीट कट कर तैयार...एक बराबर साफ-सुंदर टुकड़े। तराजू पर फेंका- वजन ठीक
दो किलो। वाह क्या एक्यूरेसी है...!
पैक करते हुए कसाई ने थैले में दो पीस मीट अलग से डाल दिए, मैने पूछा ये कैसा मीट डाल दिया भैया....
'सर जी, ये दो पीस मीट मोहब्बत के हैं- खाईए और खुश रहिए...'
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