क्यों सर??

मैं चाहता हूं
मेरी भी कोई निशानी बची रहे. मैं चाहता हूं कुछ चीजों में मेरा अहसास बाकी रहे.

इस उतपाती दुनिया में रूह कांप जाती है, इस खयाल से ही कि हमारी जीती जागती ख्वाबों सी दुनिया कल सितारों की बात होने वाली है.

इसलिए, मैं चाहता हूं मैं न सही मेरे पांवों के निशान तो बाकी हों, जिन रिश्तों में पला बढ़ा हवाओं में उसकी खनक ही बाकी रहे.

सच कहूं- दिल से...
तो मैं दरअसल चाहता हूं पूरे आकार में मौजूद होना
हर उस तहरीर में
हर इक तदबीर में
उसकी हर तस्वीर में
तकदीर में...
शायद इसलिए नहीं...
कि रेखाओं को गवारा नहीं
मेरी गुजारिश तक भी!

कुबूल कीजिए सर,
शा...
सॉरी, शा से पहले बा होता है,
सो बाआ- आदब कुबूल कीजिए
जाने कौन सी बयार है, जो बदबू की तरह निकल रही है

ये सर हैं...जो कहते हैं, दुनिया टूटने वाली है, बिखरने वाली है, आफत आने वाली है धरती फटने वाली है, समंदर पलटने वाला है- हर तरफ आग ही आग, गोले ही गोले, ऐलान कर दो दुनिया का मटियामेट होने वाला है,
डराओ सालों फिजूलखर्च लोगों को, साले अपनी सैलरी की शान में संसार की लेनी कर रखी है, जल थल वायु हर तरफ नाश मचा रखा है, हार्ड अटैक से मरने दो सालों को...
अरे हमको तो हकीकत पता है न...खबर बनाओ और मस्त रहो...

पता नहीं क्यों
कयामत की तस्वीरें देखकर मेरे दिल में फिदायीन से खयाल उठते हैं. कभी नाज होता है अपनी धरती की ताकत पर, उसकी उर्जा पर,
लहरों की जिजिविषा पर...
उसके अंतः की आग पर
आंधी पर
इंसानी नाम वाले तूफानों पर
मंत्रमुग्ध हो जाता है मन
धरती के रौद्र रूप पर

फिर भी हम कितना तुच्छ समझते हैं अपने आगे

हम अक्सर भूल जाते हैं,
कि धरती हमें बरबाद करने के लिए नहीं डोलती,
वो हमें हमारे ही पापों से बचाने की जद्दोजहद कर रही है
वो हम सबकी जिंदगी की जंग लड़ रही है,
वो शांत हो जाएगी जो जंग में हम उसके साथ आएं

अरे महाराज,
आप भी कुछ साथ दीजिए,
जानते ही हैं स्वयं सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है
आगे बढिए जनाब।
अपने होने की कुछ तो निशानी दीजिए

क्यों सर,
ठीक कहा न?

टिप्पणियाँ

जानते ही हैं स्वयं सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है
आगे बढिए जनाब.
वाह विनोद जी...लाख टके की एक बात कह गए आप. बहुत ऊर्जावान रचना लिखी है आपने. बधाई.
नीरज

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