एक तस्वीर कु-बोली के खिलाफ


बंदरिया की गोद में पिल्ला! इंसान के लिए सबक हो या न हो (क्योंकि ये लेने पर डिपेंड करता) इस तस्वीर से जो जाहिर है वो मूलतः एक क्रिया है- प्रतिक्रिया (भाषाई) से बिना शक बेहतर. तस्वीर की कहानी कुछ यूं है- जम्मू के एक इलाके में एक कुतिया रहती थी. अभी कुछ दिन पहले वो बीमारी की वजह से गुजर गई- अपने इस इकलौते पिल्ले को अकेला छो़ड़कर. बशिंदों के लिए ये कोई बड़ी बात नहीं थी (दरअसल कोई घटना ही नहीं थी.) लेकिन कभी कभार गांव में आने जाने वाली इस बंदरिया का दिल पसीज गया जब उसने अकेले में पिल्ले को कूं...कूं करते देखा. वो उसे उठा ले गई. इस पर लोगों का ध्यान तो जरूर गया- अरे, बंदरिया पिल्ले को उठा ले गई, चलो जाने दो, मुसीबत गई, जैसा मुंह वैसा रियेक्शन. लेकिन बंदरिया ने जिस हिफाजत और प्यार दुलार से पिल्ले का पालन पोषण शुरू किया, उसे देख सब दंग रह गए.


जो रिश्ते शब्दों की वजह से टूट रहे है, भाव ने उसे नया जन्म दे दिया.


कौन कहेगा, इंसानियत सिर्फ आदमी की जागीर है?

टिप्पणियाँ

Pramendra Pratap Singh ने कहा…
उम्‍दा चित्र इसे ही कहते है इंसानियत जो इंसान भूल चुका है।
subhash Bhadauria ने कहा…
आप द्वारा प्रस्तुत तस्वीर को देखकर ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां याद आगयीं जो इस तस्वीर पर नुमायां हैं -

होना मुफ़िलस बदी से अच्छा है.
रोना झूटी खुशी से अच्छा है.

तर्ज़िबे की बिना पे कहता हूँ,
जानवर आदमी से अच्छा है.

आपकी नज़र काबिले तारीफ़ है.
Udan Tashtari ने कहा…
अभी दो तीन दिन पहले ही आजतक वाले इस बंदरिया के कारनामे दिखा रहे थे.

आपने अलग दृष्टिकोण दिया-अच्छा लगा.

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