चु.आ. जी, क्या अपना जरनैल पप्पू है?

लो जी, चु.आ. जी आप पप्पू पप्पू चिल्लाते रहे, उसने ठोक कर कह दिया- जा नहीं डालते वोट. किसी पर ठप्पा नहीं लगाऊंगा, सारे के सारे एक जैसे हैं, नागनाथ और सांपनाथ में कोई फर्क नहीं होता. शिकार के लिए जाल डालते हैं तो दोनों एक जैसे फन को छुपा लेते हैं, जब खाने की बारी आती है तो सीधे निगल लेते हैं. जा, नहीं करता समर्थन- न उल्टे का, न सीधे का, तुम्हारे कहने से क्या पप्पू हो जाऊंगा?

सच कहूं चु.जी. तो आपके पप्पू की परिभाषा भी कुछ क्लीयर नहीं है, वर्ना हम ये भी बताते चलते कि आप जरनैल को पप्पू क्यों नहीं कहेंगे? आपने तो पप्पू का प्रोमोशन कर कर ये इस्टैबलिश कर दिया कि पप्पू वो है जो वोट नहीं डालता, इमेज कुछ ऐसे बनाई कि वो कोई गोल-मटोल, थोड़ा अक्ल से मंद, राजा बेटा टाइप का पार्टी-पसंद इंसान है, लेकिन वो पप्पू ही क्यों, वो चिंटू, मिंटू, संटू, मंटू कोई भी हो सकता है? आखिर पप्पू का कैरेक्टर क्या है? सिर्फ वोट नहीं डालने की आदत से भला किसी का कैरेक्टर तैयार होता है?

चु.आ. जी, आप भी गजब करते हैं- अपना जरनैल किस लिहाज से पप्पू टाइप का दिखता है? जरनैल के गुस्से की झलक तो आप पहले ही देख चुके हो, जिसके जूते ने 15वीं लोकसभा के चुनाव को ऐतिहासिक बना दिया, जिसने विरोध जताने के हथियार का अविष्कार कर दिया, हिंसक अविष्कार के बावजूद जिसने अपने आचरण से बता दिया कि उसका मकसद किसी व्यक्ति का अपमान करना नहीं था, वो न दलगत राजनीति से प्रेरित था, उसका गुस्सा भी क्षणिक नहीं था, बल्कि वो सिस्टम से खफा था। उसके वोट नहीं डालने से यही जाहिर होता है, फिर भी क्या आप उसे पप्पू कहेंगे?

क्यों भैया क्यों? वोट न देकर अपना विरोध जताने वाले के लिए पप्पू जैसी द्विअर्थी संज्ञा का इस्तेमाल क्यों? किसी भी हिंदीभाषी क्षेत्र में चले जाइए- पूछने पर पप्पू का पता मर्दों के पजामे के अंदर ही मिलेगा, फिर या किसी बाहुबली या नेता टाइप के अड्डे पर सेवा के लिए रखे गए लौंडों के रूप में. पप्पू नाम के साथ मर्द मसखरी करते हैं- उसके अजीबोगरीब कैरेक्टर पर, जो 'रस की उल्टी-धारा' में बहता है, उसे ही पप्पू कहते हैं.

ऐसे पप्पू दो चार या दस तो हो सकते हैं, बिहार में 64 परसेंट, यूपी में 60 परसेंट, जम्मू-कश्मीर में 76 परसेंट और दिल्ली में पूरे के पूरे 50 परसेंट पप्पू कैसे हो सकते हैं?
चु.आ. जी, कहीं जानबूझकर आप गाली तो नहीं दे रहे वोट नहीं देने वालो को?


सोच लीजिए, मामला मानहानी का बनता है, आपको क्या लगता है- नाकामी आपकी और पप्पू कहलाना कबूल करें हम? जब आप ही के कानून पर खरा उतर रहा है आपका सिस्टम तो वोटरों से कैसी उम्मीद, जिनका काम है बस एक ठप्पा लगाना?

आपकी कृपा से खूब दागी खड़े हैं मैदान में, हलफनामें में एक से बढ़कर एक झूठ बोला, जो कभी पैदल नहीं चलते वो भी कहते हैं मैं बे-कार हूं. करोड़ों के फ्लैट और प्लॉट को हजारों लाखों का बताया. चुनाव में उतरे तो लिमिट के बावजूद भोंपू भी खूब बजे, पोस्टर, पर्चे और नोट के खर्चे भी खूब दिखे, नामांकन से लेकर प्रचार तक नेताओं के काफिले लंबे चौड़े ही होते दिखे, गाली गलौज भी खूब हो रहा है. किसी का कुछ हुआ?

क्यों नहीं हुआ कुछ चु.आ जी? संवैधानिक अधिकार में आप हमसे बड़े हैं, वर्ना एक झटके में आप ही को पप्पू कह डालते. इज्जत करते हैं इसलिए नहीं कह रहे. बताईए भला ठप्पा लगाने का विकल्प भी ठीक से दिया है? कई सीटों पर आगे खाई और पीछे कुआं जैसा समीकरण बना हुआ है- आपकी अंखमुंदी अदा के चलते. अगर पप्पू की परिभाषा आपने इस आधार पर गढ़ी है कि लोकतंत्र में जो गैर-जिम्मेवार है वो पप्पू है, तो खुद आंख खोलकर देखो- पप्पू कौन है. अपना जरनैल तो शर्तिया नही है।

टिप्पणियाँ

संजय तिवारी ने कहा…
चु.आ. जी......हा हा!!
Udan Tashtari ने कहा…
पप्पू कौन?? :)

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