ये मेरे दद्दा का आपीएल है



वीर की तरह गरज रहे हैं फ्रेंजाइजी ओनर्स- ये मेरे दद्दा का आईपीएल पाकिस्तान को छोड़कर हर देश के खिलाड़ी के लिए है...
लेकिन पाक (खिलाड़ी और सरकार) को ये सुनाई ही नहीं दे रहा. सब सुनाई दे रहा है, लेकिन ये दद्दा वाला एंगिल नहीं दिख रहा जबकि टाइटिल से ही क्लीयर है, आईपीएल में चलेगी अपनी मर्जी.

लेकिन मर्जी पर बहस बड़ी हो चली है.
ये कैसी कैसी मर्जी
किसकी है ये मर्जी
ऐसी मनमर्जी क्यों?

ये मर्जी है शाहरुख खान की, प्रीति जिंटा की, शिल्पा शेट्टी की और विजय माल्या का. अब जरा कनेक्शन देखिए, आईपीएल का ये वो तबका है, जो मुंबई से ताल्लुक रखता है. वो मुंबई, जिसकी तारीख में आतंकियों ने 26/11 का काला अध्याय जोड़ दिया. जिस पाकिस्तानी की धरती से आए थे आतंकी, उस धरती के लालों को इसी का तो सिला मिल रहा है.

लेकिन पाक खिलाड़ियों को ये बात समझ नहीं आ रही. तने हुए रिश्तों में ये उम्मीद भी कैसे पाल रहे थे पाक खिलाड़ी- कि भारत के क्रिकेट बाजार में उनकी पहले जैसी ही बोली लगेगी. आईपीएल में नीलामी से पहले तक पाकिस्तान सबूत सबूत चिल्लाता रहा था. तब कहां गए थे ये खिलाड़ी- कि पड़ोसी और मित्र देश के साथ ऐसी अनदेखी ठीक नहीं.

कहने को तो बहुत पाकिस्तान में ये पॉपुलर हैं, लेकिन फिर सचिन, शाहरुख जैसी अपील क्यों नहीं करते- हम भाई भाई हैं. सरकार को भी भाइचारे का ख्याल रखना चाहिए. लेकिन जब इस तने हुए रिश्ते का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, तो सियासत का राग अलाप रहे हैं खिलाड़ी, क्रिकेट में सियासत मिलाया जा रहा है.

ये बिलकुल गलत है, दोनो देशों के बीच अमन की आशा में क्रिकेट एक अहम कड़ी है, और इसमें सियासत नहीं मिलाई जानी चाहिए, लेकिन जनमानस का क्या करें. जनता पाकिस्तान की वर्डकप में जीत का दुआ मांगती है, लेकिन हमले के बाद पाकिस्तान के दोमुंहेपन पर आह भी भरती है. ये ठीक है, कि अपने पाले हुए आतंक का सबसे बड़ा शिकार खुद पाकिस्तान भी है, लेकिन सारी दुनिया से सबूत मांगने के बाद भारत से बार बार सूबत की मांग करने का क्या तुक?

आखिर भारत से किस भाईचारे की उम्मीद रखते हैं पाक खिलाड़ी? उन्हें भी पता है भारतीय जनमानसा का, कि 26/11, खासकर इसके बाद पाक सरकार के टालमोटल के बाद कैसे एंटी-पाकिस्तान हो गया है. अगर आईपीएल के फ्रेंचाइजी भी ऐसा समझते हैं, तो बुरा क्या है? वैसे भी खिलाड़ी खरीदना उनका निजी मामला है. फिर इतनी हाय तौबा क्यों?

ऐसा तो कतई नहीं, कि आईपीएल में खेलने का मौका देने के बाद पाक सरकार सुधर जाती, या पाक में पॉपुलर ये खिलाड़ी संबंध बेहतर बनाने के लिए अपने देश में जनमत तैयार करते? अगर ऐसा नहीं, तो ये पूरी बहस ही बेकार है.

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
पूरी तरह सहमत…। कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा उन लोगों के न खेलने से…

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