'कपिल' के 'मतलबी चौके' का मीनिंग

कपिल नाम सुनकर असमंजस में मत पड़िए, इस चौके का का संदर्भ मीडिया से है, और जो बैट्समैन इनवॉटेड कॉमा में बंद है, वो अपने देश के एचआरडी मिनिस्टर है- मिस्टर कपिल सिब्बल। अब माना कि मंत्री जी अपने 'हरियाणा हरिकेन' की तरह चौका जड़ने में सिद्धहस्त हैं, सियासत में इतनी मौकापरस्ती तो है ही, कि मौका देखकर चौका उड़ा सकें। ढीली गेंद डालोगे भैया, तो नौसिखिया भी यही करेगा, वर्ना क्या ऐसे वैसों की क्या औकात।

आज धुली हुई चकाचक शर्ट के साथ साफ सुथरी इमेज लेकर चलते हैं, वो सिब्बल इसी मीडिया की देन हैं, चाहे एक कार्यकर्ता के रूप में वो पार्टी का काम हो, या मंत्री के रूप में सूझ बूझ दिखाते हैं, मीडिया न बताए, तो सिब्बल साहब 'एक बड़ी टोकरी का छोटा आइटम होते'. पिछले दिनों इसी मीडिया को आंख दिखा गए सिब्बल साहब, 'छापिए और दिखाईए, जो दिखाना है छापना है, हमे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये बाते भीं उन्होंने वहां कही, जहां 'पत्रकारिता की फ्रंटलाइन मौजूद थी, बड़े बड़े नाम गिरामी चेहरे कोई जवाब नहीं दे पाए.

क्यों?कहीं न कहीं हमें अपने पेशे के ढीले पेच का पता है, एहसास है, कि हमने खुद को जोकर की तरह पेंट कर लिया है, और खबरों के सेलक्शन में व्यावहार भी जोकर की तरह करते हैं। हमने अपने आपको हास्यास्पद बना लिया है, सिब्बल के उसी बयान पर मैंने कहीं कुरबान अली को पढा था- आज मीडिया का हाल ये है कि जनता जूते उतार कर तैयार है, वो मीडिया वालों की गिरेबान पकड़ कर पूछने के लिए कमर कस चुकी है- ये शनि, मंगल का अंधविश्वास कब बढ़ाना बंद करोगे, 'आइटम गर्ल' जैसी भैंस का भाव बढ़ाना कब बंद करोगे, प्राइम टाइम में पेल देते हो, हमारी नस्ल खराब करनी है, भूत प्रेत और तीसरी दुनिया के चक्कर में तुम लालगढ़ और 'शराब की फैक्ट्री में काम करते सियासतदानों' को कब तक अनदेखा करते रहोगे.

कुरबान अली का इशारा साफ था, उन्हें रंज तो है कपिल के बयान का, लेकिन मीडिया की दशा से भी सुकून नहीं. अव्वल तो ये है कि साल दर साल हालत और गंभीर होती जा रही है. आपको मजाक लगेगा. मैं सबूत देता हूं. आज 13 जुलाई है. पिछले साल ठीक इसी दिन को एक पोस्ट लिखा था नाम था- पांच दिनों की प्यास, जिसमें ये बात जाहिर है कि कैसे एक लाइन को बढ़ाकर टीवी पर आधे घंटे का प्रोग्राम बनाया जाता है. किस तरह का बड़बोलापन, किस तरह का एग्जेजरेशन आ गया है मीडिया के नैरेशन में. सनसनी फैलानी की कोशिश इस तरह से हो रही है, कि सिब्बल तो सिब्बल, स्कूल कॉलेज के बच्चे, कॉलसेंटर और कारखानों में काम करने वाले 'मशीन मानव' भी भाषा का भाव हमसे बेहतर समझने लगे हैं, जरा देखिए कैसा शो-ओपेन बनाया है भाइयों ने...
पांच दिन
सिर्फ पांच दिन...
जी हां, सिर्फ पांच दिन बाकी हैं
सावन शुरू होने वाला है
उसने कसम खाई है
इस बार नहीं तोड़ेगा कसम
सावन में शराब पीने की कसम
वो कर रहा है रोज प्रैक्टिस
संयम रखने की प्रैक्टिस
हफ्ते भर से हाथ तक नहीं लगाया
न ग्लास को, न बोतल को
लेकिन,एक रात
जब वो अकेला था
मचल गया जब वो तन्हा था
पानी भर आया उसके मुंह में
उसने आव देखा न ताव
फ्रिज से निकाला पानी
फ्रीजर से बर्फ के कुछ टुकड़े
फिर उठाई ली उसने बोतल
और खोल दी ढक्कन
उड़ेल दी ग्लास में
और बुझा ली उसने
पांच दिनों की प्यास

हाल बिलकुल नहीं बदला, बल्कि इतना बिगड़ा कि सिब्बल जैसे लोग भी लतिया कर चल दे रहे हैं, बॉस लोगों कुछ सोचो...कुछ सोचो, ये काम आप ही लोगों का है।

टिप्पणियाँ

विकास मिश्र ने कहा…
बढ़िया है विनोद बाबू...। शोओपेन बड़ा मजेदार है। क्रिएटिव माइंडसेट में लिखा गया है।

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