जब बेटा लाएगा 'दामाद' और बेटी लाएगी 'बहू' !

(-अल्लाह-ईश्वर के कहर से ऐसे तबाह हुए शहर 'सोडोम और गोमरा')

ये जुमला मेरा नहीं, 'दो नंबर' के खबरिया चैनल का है। जिसमें और कुछ हो या न हो चौंकाने वाला तत्व तो है ही. आप समझ ही गए होंगे ये जुमला जुड़ा है समलैंगिकता पर तेज हुई बहस से. नजर पड़ते ही मुझे भी समझते देर न लगी, कि क्या कहना चाहता है जुमला. डर तो नहीं कहूंगा, हां, अजीब जरूर लगा इस जुमले का मतलब समझकर-

जिस तरह से बहस चल रही है-मर्द से मर्द और औरत से औरत का कनेक्शन जोड़ने की, कल को मान लीजिए आपका-हमारा (किसी का भी) बेटा जिद कर बैठे- मैं तो मोहल्ले के टिंगू-मिंगू-चिंगू के साथ शादी करूंगा। शादी करने का मतलब साथ रहूंगा, बेटी कहने लगे- मैं तो रिंकी-पिंकी-चिंकी के साथ हाथ पीले करूंगी- तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी. आप बोलेंगे नहीं, बेटा, शादी के लिए ये 'च्वाइस' ठीक नहीं, तो वो तपाक से 100 सेलिब्रिटियों का नाम गिना देगा- फिल्म स्टार्स, फैशन डिजाइनर्स, पेंटर्स, म्यूजिशियन्स, मॉड्सल इतने गुड लुकिंग लोग इसमें पक्ष में, तो आप जैसे जिंदगी भर पत्रकारिता की 'सड़ी-गली नौकरी' करने वाले, 'जब जैसा, तब जिधर' टाइप से हिचखोले खाने वाले इंसान की कौन सुने. पापा ये 21 वीं सदी है, आपके पास नए जमाने न अनुभव है, संस्कार।
आ कहेंगे आप, औरों के लिए कह देना कि- ठीक है, अगर किसी को 'पतली गली' पसंद है, तो आपको क्या ऐतराज है, भई, ह्यूमन राइट्स का जमाना है, जिसे जो पसंद हो, उसे पाने का अधिकार है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो 'कर्म' वैज्ञानिक मानदंडों पर खरा नहीं उतरता, प्राकृतिक रूप से सृष्टि की रचना की खिलाफत करता हो. संबंधों के समीकरण में एक नया उलझन पैदा करता हो, जिंदगी भर सेक्स की कामना को अतृप्त रखता हो (ये विश्लेषण डॉक्टरों का है- कि पेनिस और वजाइना का निर्माण ढांचागत स्तर पर एक दूसरे के पूरक के रूप हुआ है, 'पॉटी का दरवाजा' तो इंटरकौस के लिए है ही नहीं- न ढांचे के लिहाज से, न साफ सफाई यानी हाइजीन के लिहाज से, बिलकुल गंदा रास्ता है)

ऐसे में 'इन राहों पर अपने कायदे कानून से गुजरना सेक्सुअल असंतुष्टि के सिवा कुछ और नहीं देगा, जो आपको निश्चित तौर पर मानसिक रूप से बीमार कर सकता है। और तो और, मनोवैज्ञानिक रूप से भी "उल्टी नाव पर सवारी करना" सोसायटी और खुद आपके लिए घातक हो सकता है. कोई विरोध करे या न करे, भले ही कोई कोर्ट आपको संबंध बनाने की मजूरी दे दे, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. जो धारा के खिलाफ है, उसका हश्र आप किसी भी नदी के किनारे बैठकर देख सकते हैं.

और तो और, बाइबिल और कुरान जैसे ग्रन्थों में दो शहरों का जिक्र है- सोडोम (जिससे सोडोमी शब्द बना है) और गोमरा, इनका हश्र पढ़ लीजिए. मृत सागर के किनारे बसे ये दोनों शहर अपने उल्टे सेक्सुअल प्रिफरेंसेज और व्याभिचारी संस्कृति के चलते अल्लाह-ईश्वर की नजरों में चढ़ गए. शहर का मुआयना करने जब आए तो अल्लाह-ईश्वर को एक बंदा नहीं मिला दोनों शहरों में जो सेक्स विकृति से परे हो. आखिर अल्लाह-ईश्वर को इन दोनों शहरों को बरबाद करना पड़ा. खुदा के इस कहर का हवाला देते हुए एक शख्स ने मेरे मेल पर समलैंगिकता के पक्ष में उदगार भेजे हैं, जरा देखिए, जनाब कितनी कुंठाओं से भरे हैं-
We are ‘gays’ and ‘lesbians’, People think we are worst of all; Look at the politicians of the country, Before them you will find us quite small। To deprecate our perversion, You are quoting culture and creed; Against these blood-sucking leaders, What silences the people of your breed। We may be morally wrong, Sometimes our heart also says; You address dirty legislators with respect, While call us with the impious word ‘gays’। If our opponents believe in God, Our actions will invoke His wrath and rage; Like the city of ‘ Sodom ’, our end will come, And you will be free from this filthy political cage।

भाई जी का नाम नहीं लूंगा, अभी 'हवा' इतनी नहीं चली कि बेचारे सीना ठोक कर कहेंगे- हम 'प्लस+Plus और माइनस+Minus' कनेक्शन वाले हैं, इन्हें बंदे के साथ रहने की आजादी इसलिए चाहिए कि जब इस देश में गंदे नेता सम्मान के रह सकते हैं तो इनके जैसे मोहतरम और मोहतरमा लुक छिप के 'गंदा काम' क्यों करें (ध्यान से पढिए, अपने कर्म को गंदा इन्होंने खुद कहा है) इन्हें भी नेताओं की तरह 'गंदा काम' करने की खुली छूट, वो भी ससम्मान चाहिए। जनाब ये भी कहते हैं- कि अगर हम गंदे हैं, तो अल्लाह-ईश्वर का क्रोध जागने तक आप भले इंसानों शांत रहिए- सोडोम और गोमरा की तरह हमें वो नष्ट कर देंगे.

लेकिन भाई जान, ये दुनिया इस नियम से नहीं चलती कि फ्लाने का काम लूट से भी चल जाता है, तो मैं भी डाका डालूं, फ्लानी देह बेचकर काम चला सकती है, तो मैं भी बाजार में बैठक पसार दूं। आपको अंदाजा नहीं, अगर ऐसी छूट मिल जाए, तो कैसी दशा बन जाएगी दुनिया की. बिन बुलाए कयामत आ जाएगी.
तो आईए, जो गंदा है, उसे मिल कर गंदा कहते हैं, वर्ना अगली पोस्ट और भी निर्लज्ज होगी. एक अदना पत्रकार इससे ज्यादा और क्या धमकी दे सकता है, सुधर जाइए, और अपनी प्राथमिकता प्रकृति के अनुरूप कीजिए. दुनिया खूबसूरत है, तरीके से मजा लीजिए- 'माऊंट एवरेस्ट' पर बैठकर 'मैरियाना ट्रैंच' का ख्वाब देखिए, और 'मैरियाना ट्रंच' वालियों के दिल में 'माउंट ऐवरेस्ट' की चाहत पैदा होने दीजिए, आदत मत बिगाड़िए.

टिप्पणियाँ

IMAGE PHOTOGRAPHY ने कहा…
आज सम्लैगिंता को हवा देना गलत है
Udan Tashtari ने कहा…
साधु!! साधु!!

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