मां नहीं हूं फिर भी...

मां नहीं हूं फिर भी, एक बेटी का पिता हूं इसलिए भी, समझ सकता हूं कि मां का मतलब औलाद के लिए क्या होता है। किसी की जिंदगी में मां के होने का मतलब क्या होता है. तपते बदन पर मां के हाथ फेरने का असर क्या होता है. मां औरत होती है, लेकिन मैं मर्द होते हुए भी इस औरत को समझना चाहता हूं, उसके दिए हुए शरीर में उसकी भावनाएं उड़ेलना चाहता हूं.

मेरे अंदर इस भावना के बीज पापा ने बोए थे। पापा कहा करते थे हर मर्द में कुछ हिस्सा औरत का होता है, क्योंकि औरत किसी देह का नाम नहीं, बल्कि कुछ गुणों का नाम है, पांच गुण गिनाते थे पापा जो स्त्री की संरचना में होती है- प्रेम, दया, करुणा, सहानुभूति, और समर्पण। इन्हीं भावनाओं की प्रबलता से बनती है औरत, जितनी मजबूत होती है ये भावनाएं उतनी ही मजबूत और बेमिसाल होती है औरत.

पापा अक्सर सीता का उदाहरण दिया करते थे- धर्म के लिहाज से नहीं, व्यावहार के लिहाज से, कि अपनी जगह पर सीता कितनी कट्टर औरत थी। मर्द के इशारे पर हर तरह का इम्तहान दिया, लेकिन हर इम्तहान को अपना कर्तब्य समझा। राजा की बेटी झाड़-फूस में रही लेकिन मर्द से शिकायत के नाम पर अपनी ममता को कमजोर नहीं पड़ने दिया. ये सीता के अंदर मौजूद इन पांच भावनाओं की प्रबलता का नतीजा था.

सीता तो औरत थीं, लेकिन इस औरत को समझने के लिए पापा राम का उदाहरण भी देते थे। कहते थे- कि जो पांच भावनाएं औरत को पूजनीय बनाती हैं, उनका अनुपात अगर मर्द में औसत से ज्यादा हो जाए तो वो पुरुषोत्तम बन जाता है। वो प्रेम, दया, करुणा, सहानुभूति और समर्पण की साक्षात मूर्ति बन जाता है.

मदर्स डे पर मुझे एक ऐसी ही कहानी से रूबरू हुआ- मिस इंडिया वर्ल्ड-2009 पूजा चोपड़ा की कहानी सुनकर मुझे उसकी मां पर गर्व हुआ। इंटरव्यू में जैसा पूजा चोपड़ा ने बताया- उसकी पैदाइश के साथ मां ने लगातार दूसरी बेटी को जन्म दिया। जबकि उसके पिता और घरवाले बेटा चाहते थे. उनकी ये ख्वाहिश इतनी मुखर थी कि पूजा की पैदाइश पर मातम पसर गया. उसकी मां को कोसा जाने लगा. विवाद इतना बढ़ा कि पूजा की मां को पति का घर छोड़ना पड़ा. कोई आसरा नहीं, जीने का कोई सहारा नहीं, लेकिन पूजा और उसकी बड़ी बहन शुभ्रा को लेकर उनकी मां निकल गई घर से. कुछ दिन बच्चों को ननिहाल छोड़ा और खुद नौकरी में जुट गई. अपने बुते पर न सिर्फ बेटियों को पाला-पोसा, पढ़ाया लिखाया, बल्कि उनके अंदर इतनी पॉजिटिव सोच भरी कि वो मिस इंडिया जैसे मॉडर्न कॉन्टेस्ट में हिस्सा ले सके...आज वो इस बात पर खुशनसीबी जाहिर कर रही है कि वो अपनी बेटी के नाम से जानी जा रही है...

ये शायद मेरे अंदर रचा बसा पापा का वो पाठ था कि पूजा की कहानी से मैं सिहर गया। मां के संधर्ष के आगे मेरा सिर श्रद्धा से झुक गया। शायद इसलिए भी इतने गहरे उतरी वो भावना कि मैं भी एक बेटी का पिता हूं- मुझे याद है जब वो पैदा हुई थी तो किस तरह मेरा लड़कपन एक झटके में मुरझा गया था. जब पहली बार गोद में आई थी तो किस तरह मेरे कंधे चौड़े हुए थे- एक लंबी सांस ने किस तरह सीने में कितने सपने भर दिए थे. गांव में बेटियों का हश्र मैने देखा था. आप चाहे बेटी से जितना प्यार करते हो- उस ढर्रे को ज्यादा नहीं बदल सकते. बेटी बड़ी होने के साथ मेरे अंदर ये एहसास भी बड़ा होता गया कि इस ढर्रे पर बिटिया को नहीं जाने दूंगा. कुछ करूंगा.

मैं आज समझ सकता हूं- कुछ करने की ये भावना पापा के उन्हीं पाठ की वजह से इतनी बलवती हुई, जो उन्होंने राम और सीता का उदाहरण देकर समझाया था. उन्हीं भावनाओं के साथ आज अपनी जमीन छोड़कर, शहर में बंजारा बनकर बेटी के सपने को आकार दे रहा हूं. कुछ कर जाए तो मेरे अंदर की औरत को सुकून मिले.

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
शोभा ने कहा…
बहुत अच्छा लिखा है। मातृ दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
समयचक्र ने कहा…
मदर्स डे पर ममतामयी माँ को प्रणाम करता हूँ .

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