पीली पड़ चुकी डायरी के पन्ने-1
पन्ने पुराने हैं, लेकिन पन्नों पर उतरी इबारत अब तक मटमैली नहीं हुई. शब्दों के बीच पसरी उदासी भी एक अलग रंग में दिखती है. जब उतरना हुआ तो देखिए इस 'रंगहीन' ने भी चुना रंगों के त्योहार का मौका. वो साल 2000 था-
मैं रंगहीन हूं
या रंगहीन हो गया हूं
जो भी कह लो अपनी सुविधा से
निरा सफेद या घुप्प काला.
मैं चाहता था मेरा रंग नीला हो
मगर मुझ पर फेंक दिया गया लाल रंग
मुझे लाल से पहचाना जाता रहा
मैं नीले के स्वप्न में डूबा रहा।
नीला कभी उतरा नहीं
लाल कभी चढ़ा नहीं
जब भी कपड़े उतारता हूं
तुम देख लेती हो मेरी रंगहीनता !
*अजीब है रंगो का विज्ञान भी। सफेद वो जो सूरज की सतरंगी किरणों से एक भी रंग नही लेता, और काला वो जो सूरज की सारे रंगों को अपने अंदर समेट लेता है। काले और सफेद के बीच लाल रंग की हकीकत और नीले रंग का सपना...
आप सबको बहुत बहुत मुबारक हो रंगों का त्योहार- Happy होली!
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