लो, तुम्हें बेदखल किया...!


मुंबई में मौत का तांडव मचाने वाले
मायानगरी में दहशत फैलाने वाले
सरेआम बेकसूरों का खून बहाने वाले
तुम कैसे हो सकते हो अल्लाह के बंदे
तुम्हें अगर नफरत है इंसानियत के नाम से
तो हम तुम्हें बेदखल करते हैं इस्लाम से


ये फरमान है मुंबई के मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट का...आतंकियों के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अख्तियार किया है ट्रस्ट के मेंबरान ने। मौलानाओं ने ऐलान किया है कि हंसते खेलते शहर में मौत का कहर बरपाने वाले आतंकियों को दफनाने की जगह नहीं दी जाएगी, क्योंकि कब्र में ऐसे काफिरों के लिए कोई जगह नहीं होती.

मुंबई में जो कुछ हुआ, आतंकियों की वजह से शहर दहशत के साये में रहा, इस पूरे वाकये से बेहद आहत है मुंबई का मुस्लिम समुदाय। आतंकियों के सफाये के बाद जब शहर में अमन कायम हुआ, ट्रस्ट ने एक आपात बैठक बुलाई, जिसमें मौलानाओं ने आम सहमति से मुंबई में मारे गए उन 9 आतंकियों को काफिर करार दे दिया, जिन्होंने पूरे 59 घंटे तक मुंबई को दहलाया, सरे राह चलते बेकसूरों का खून बहाया.

ट्रस्ट के अध्यक्ष इब्राहिम तई ने मीडिया के सामने ये फरमान जारी किया कि जिस मजहब में खड़ी हरी फसल को काटने की मनाही है, वो इस कदर जेहाद के नाम पर बेकसूरों का खून बहाते फिर रहे है, ये इंसानियत का कत्ल तो है ही, पैगम्बर मोहम्मद के उसूलों का भी खून है। ऐसे दहशतगर्दों को मुसलमान कहना इस्लाम का अपमान है.

मुस्लिम काउंसिल ने अपने इस फैसले की इत्तिला मुंबई पुलिस को दे दी है. आमतौर पर पुलिस मजहब के लिहाज से अपराधियों को भी मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में दफ्नाती आई थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. अब बोलो, कहां जाओगे दहशतगर्दों, तुम्हें तो दफ्न होने के लिए दो इंच जमीन भी नसीब नहीं होगी.

शैतानों, तुमने तो अपने करम से अपने वालिदों का वो हक भी छीन लिया, जो तुम्हें कंधा देकर कब्रिस्तान ले जाते, और तुम्हारी रूह के साथ अपने लिए भी दुआ करते-
सलाम हो तुम्हें ऐ कब्रवालों
अल्हाह मगफरत फरमाए हमारी और तुम्हारी
तुम हमसे पहले यहां आए
हम तुम्हारे पीछे आने वाले हैं!

टिप्पणियाँ

Varun Kumar Jaiswal ने कहा…
उम्मीद है सरहद पार भी ये ख़बर पहुँच गई होगी |
धन्यवाद |
Udan Tashtari ने कहा…
यही हश्र होना चाहिये.
Arvind Mishra ने कहा…
ऐसे ही बुलंद फैसलों की आज जरूरत है -सच तो यह है कि इस्लाम के नाम पर आतंक फैला कर मुस्लिमों के लिए ही बहुत मुश्किल हालात पैदा किए जा रहे हैं ! आज वे शक और शुब्हे की निगाह से देखे जा रहे हैं जबकि निन्याबे फीसदी मुसलामानों से आतंक का कुछ लेना देना नही है -जो कुछ गदार हैं यहाँ उन्हें अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि वे अपनी कॉम के लिए ही मुश्किलात पैदा कर रहे हैं ! आज सबसे बड़ी जिम्मेदारी पढ़े लिखे और विद्वान् मुस्लिम समुदाय के लोगों की है कि वे सख्त शब्दों में ऐसी घटनाओं की निंदा करें और अपने समुदाय को सही दिशा दें !

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